
इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा एक बार फिर अपने विवादित बयान को लेकर चर्चा में हैं।
हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा – “जब मैं पाकिस्तान और बांग्लादेश गया, तो मुझे वहां घर जैसा महसूस हुआ। नेपाल भी ऐसा ही लगा। भारत को पड़ोसियों से रिश्ते सुधारने पर फोकस करना चाहिए।”
इतना कहने की देर थी कि सियासत का टेम्परेचर फिर से हाई हो गया।
पड़ोसियों से प्यार की पैरवी: ‘हेल्प करो, लड़ो मत’
पित्रोदा ने साफ़ कहा कि भारत की विदेश नीति पड़ोसियों को प्राथमिकता देने वाली होनी चाहिए।
उन्होंने कहा–“पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल – सब मुश्किल हालात में हैं। हमें मदद करनी चाहिए, दुश्मनी नहीं बढ़ानी। आतंकवाद ज़रूर चिंता है, लेकिन इंसानियत भी ज़रूरी है।”
एक ओर वो ‘शांति की बात’ कर रहे थे, दूसरी ओर राजनीतिक तूफान उठ चुका था।
BJP का पलटवार: “घर पाकिस्तान है तो यहां क्या कर रहे?”
बीजेपी ने इस बयान पर सख्त प्रतिक्रिया दी। प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने तंज कसते हुए कहा- “पित्रोदा कहते हैं पाकिस्तान में उन्हें घर जैसा लगा। यही वजह है कि UPA सरकार 26/11 के बाद भी शांत बैठी थी!”
भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस हमेशा पाकिस्तान को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रखती है, जबकि आतंकी हमलों में भारत को नुकसान हुआ है।
क्या पित्रोदा का बयान गलत समय पर आया?
जब देश में चुनावी माहौल गरम है, ऐसे में कांग्रेस से जुड़े किसी नेता का इस तरह का बयान देना, बीजेपी के लिए मुद्दा बन जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि पित्रोदा का मकसद “संवेदनशील विदेश नीति की बात करना” था, लेकिन उसका राजनीतिक असर कुछ और ही निकला।

‘बयानबाज़ी’ बनाम ‘नीति’: क्या फर्क है अब कोई पूछे?
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पित्रोदा का बयान – “पड़ोसियों से रिश्ते बेहतर हों”
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बीजेपी का जवाब – “पाक प्रेम दिखा रहे हैं, भारत को भूल गए?”
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जनता का सवाल – “रिश्ते सुधारें या सियासत चमकाएं?”
सैम पित्रोदा ने विदेश नीति पर बात की थी, लेकिन देश में सियासत की गर्मी को और भड़का दिया। बीजेपी को नया मुद्दा मिल गया, और कांग्रेस को सफाई देने की ज़रूरत।
“बयान देना आसान है, लेकिन टाइमिंग और टोन समझना मुश्किल…”
